Tuesday, June 5, 2012

"आदर्श प्रेम" – हरिवंश राय वच्चन


प्यार किसीको करना, लेकिन –
कहकर उसे बताना क्या ।

अपनेको अर्पण करना पर–
औँरो को अपनाना क्या ।

गुणका ग्राहक बनना, लेकिन–
गाकर उसे सुनाना क्या ।

मन के कल्पित भावोँ से
औरों को भ्रम मे लाना क्या ।

ले लेना सुगन्ध सुमनों की,
तोड उन्हे मुरझाना क्या ।

प्रेम – हार पहनाना, लेकिन–
प्रेम – पाश फैलाना क्या ।

त्याग अंक में पलें प्रेम–शिशु
उनमें स्वार्थ बताना क्या ।

देकर हृदय हृदय पाने की
आशा व्यर्थ लगाना क्या ।

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Thank You very much. Raj